अरे वाह।
जो पास ही है उसे बस यों तो बुलाया न करो!
बहुत मीठी है जुबान यों तो फुसलाया न करो!
यह चैत का महीना फाग यों तो गाया न करो!
इंसाफ के शक्ल में इल्जाम तो योँ लगाया न करो!
माना की इस वक्त खुदा हो बंदों को भगाया न करो!
खून जिस्म का पानी रंग से यों तो नहलाया न करो!
बेसम्हाल गीत से बेजुबान को यों तो दहलाया न करो!
अरे वाह हाथ के खंजर को यों तो गुलाब बताया न करो।