शुक्रवार, 23 फ़रवरी 2018

क्या कहिए, बस चुप रहिए

न हो जम्हूरियत के कान तो चुप रहिए
अब मेरी जाँनिसारी का क्या कहिए
अधिक से अधिक शाइरी दो कौड़ी
इधर उधर की अवाम से क्या कहिए।
हवा पछाही और हुजूर की खैर ख्वाही
आवाम की खुद्दारी की बात न कहिए।
सब एक ही सरीखे और भी है तबाही
उजड़ा चमन कामयाब रही वतन निगाही
किसने किसे लूटा, किसी से क्या कहिए।
हुक्मरानी और सियासत डूबते से उगाही
इस जाँनिसारी को शाइरी में क्या कहिए।

बुधवार, 21 फ़रवरी 2018

तेरा इंतज़ार

मुझे टहनी पर लचकते फूल अच्छे लगते हैं!
फिर भी जाने क्यों तेरा इंतज़ार करता हूँ!

जिंदगी रेत में नाव

ये खिला खिला गुलाब है या बहका हुआ ख्वाब।
क्या कहूँ जिंदगी तो बची ज्यों रेत में हो नाव!