न हो जम्हूरियत के कान तो चुप रहिए
अब मेरी जाँनिसारी का क्या कहिए
अधिक से अधिक शाइरी दो कौड़ी
इधर उधर की अवाम से क्या कहिए।
हवा पछाही और हुजूर की खैर ख्वाही
आवाम की खुद्दारी की बात न कहिए।
सब एक ही सरीखे और भी है तबाही
उजड़ा चमन कामयाब रही वतन निगाही
किसने किसे लूटा, किसी से क्या कहिए।
हुक्मरानी और सियासत डूबते से उगाही
इस जाँनिसारी को शाइरी में क्या कहिए।
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